रामपुर तिराहा गोलीकाण्ड
भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में कई आंदोलन हुए, परंतु कुछ घटनाएँ इतनी दर्दनाक होती हैं कि वे न सिर्फ आंदोलन की दिशा बदल देती हैं, बल्कि पीढ़ियों तक लोगों की स्मृति में रह जाती हैं। ऐसा ही एक दुर्भाग्यपूर्ण और विभत्स कांड था रामपुर तिराहा कांड, जो 1 और 2 अक्टूबर 1994 की रात को घटित हुआ। यह घटना उत्तराखंड राज्य की माँग को लेकर हुए आंदोलन के दौरान हुई, जिसमें आंदोलनकारियों पर पुलिस द्वारा अत्यधिक बल प्रयोग, गोलीबारी और महिलाओं के साथ अभद्रता जैसे आरोप लगे।
पृष्ठभूमि: उत्तराखंड राज्य आंदोलन
उत्तराखंड की माँग 20वीं सदी के मध्य से ही उठने लगी थी। उत्तर प्रदेश का पर्वतीय क्षेत्र, जिसकी भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियाँ मैदानी इलाकों से बिल्कुल भिन्न थीं, वर्षों तक उपेक्षा का शिकार रहा। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सड़क, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में यहाँ के लोग लंबे समय से अलग राज्य की माँग कर रहे थे।
1994 में जब उत्तर प्रदेश सरकार ने शिक्षकों की भर्ती में स्थानीय (दून व अन्य पर्वतीय क्षेत्र) निवास प्रमाण पत्र की अनिवार्यता हटा दी, तब आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया। हजारों की संख्या में महिलाएं, छात्र, युवा और सामाजिक कार्यकर्ता आंदोलन में सक्रिय हो गए।
रामपुर तिराहा कांड: घटना का विवरण
दिनांक: 1-2 अक्टूबर 1994
स्थान: मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश के रामपुर तिराहा क्षेत्र
उत्तराखंड राज्य की माँग को लेकर सैकड़ों आंदोलनकारी दिल्ली में विरोध प्रदर्शन करने के लिए निकल रहे थे। उनकी योजना थी कि वे राजघाट जाकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देंगे और शांतिपूर्ण धरना देंगे। लेकिन मुजफ्फरनगर के पास रामपुर तिराहा पर उन्हें रोक दिया गया।
पुलिस ने तिराहे पर बैरिकेडिंग कर दी और जब आंदोलनकारी आगे बढ़ने लगे, तो भीषण लाठीचार्ज और फिर गोलियां चलाई गईं। इस दौरान पुलिस द्वारा कई महिलाओं के साथ बदसलूकी, छेड़छाड़ और बलात्कार के आरोप भी लगे।
मुख्य आरोप और पीड़ादायक पहलू
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गोलीबारी में मौतें: रिपोर्ट्स के अनुसार, कम से कम 6 लोगों की मौत हुई, कई गंभीर रूप से घायल हुए।
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महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार: कई महिला आंदोलनकारियों ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनके कपड़े फाड़े, उनके साथ मारपीट की, यहाँ तक कि बलात्कार भी किया गया।
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सरकारी दमन: राज्य सत्ता द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन कर रहे नागरिकों पर इस प्रकार की कार्रवाई को सरकार की दमनकारी नीति कहा गया।
सरकारी प्रतिक्रिया और जांच
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तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने घटना की जांच के लिए सीबीआई को जिम्मेदारी सौंपी।
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सीबीआई की रिपोर्ट में कई पुलिस अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध बताई गई।
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कई वर्षों तक केस कोर्ट में चलता रहा, लेकिन किसी बड़े अधिकारी को कठोर सजा नहीं मिली, जिससे लोगों में रोष और निराशा बढ़ी।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
रामपुर तिराहा कांड ने उत्तराखंड आंदोलन को नई गति और ऊर्जा दी। यह घटना एक भावनात्मक मोड़ बन गई, जिसने पूरे उत्तराखंड को झकझोर दिया।
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उत्तराखंड की जनता में सरकार के प्रति विश्वास कम हुआ।
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आंदोलन और अधिक उग्र हो गया और इसकी राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा होने लगी।
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विभिन्न सामाजिक संगठनों, छात्र संघों और महिलाओं ने खुलकर समर्थन दिया।
उत्तराखंड राज्य की स्थापना
रामपुर तिराहा कांड के 6 साल बाद, 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग कर एक स्वतंत्र राज्य बनाया गया। इस राज्य की स्थापना में रामपुर तिराहा की घटना एक निर्णायक मोड़ मानी जाती है।
वर्तमान स्थिति और स्मृति
रामपुर तिराहा आज भी उत्तराखंड राज्य के इतिहास में बलिदान और संघर्ष का प्रतीक है।
हर साल इस दिन को उत्तराखंड में ‘बलिदान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
शहीदों की स्मृति में कई जगह स्मारक बनाए गए हैं और हर वर्ष उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है।
निष्कर्ष
रामपुर तिराहा कांड केवल एक घटना नहीं, बल्कि एक दर्दनाक अध्याय है जिसने उत्तराखंड राज्य निर्माण के आंदोलन को मजबूती दी। यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि लोकतंत्र में आवाज उठाना अधिकार है, और उसे दबाना अमानवीय और अन्यायपूर्ण है। रामपुर तिराहा के शहीदों का बलिदान उत्तराखंड की आत्मा में सदा जीवित रहेगा और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।