रूपकुंड झील उत्तराखंड: रहस्यों से भरी हिमालय की झील

उत्तराखंड रूपकुंड ‘कंकालों वाली झील’

यदि आप एडवेंचर ट्रैकिंग के शौक़ीन है तो रूपकुंड झील आपके लिए एक बेहतरीन जगह हैं। रूपकुंड झील (Roopkund Lake) हिमालय के ग्लेशियरों के गर्मियों में पिघलने से उत्तराखंड के पहाड़ों में बनने वाली छोटी सी झील हैं। यह झील 5029 मीटर ( 16499 फीट )कि ऊचाई पर स्तिथ हैं जिसके चारो और ऊचे ऊचे बर्फ के ग्लेशियर हैं। यहाँ तक पहुचे का रास्ता बेहद दुर्गम हैं इसलिए यह जगह एडवेंचर ट्रैकिंग करने वालों कि पसंदीदा जगह हैं।

Roopkund Lake Uttarakhand in Hindi

 

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित रूपकुंड झील, जिसे ‘कंकालों की झील’ भी कहा जाता है, हिमालय की गोदी में बसी एक रहस्यमयी और ऐतिहासिक स्थल है। समुद्रतल से लगभग 5,029 मीटर (16,500 फीट) की ऊंचाई पर स्थित यह झील न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ पाए गए मानव कंकालों ने इसे एक ऐतिहासिक और वैज्ञानिक अध्ययन का केंद्र भी बना दिया है।

उत्तराखंड रूपकुंड झील का रहस्य

भूगोल और पर्यावरणीय स्थिति

रूपकुंड झील एक हिमनदीय झील है, जो वर्ष के अधिकांश समय बर्फ से ढकी रहती है। गर्मियों में बर्फ के पिघलने पर झील के किनारों और तल में कंकाल दिखाई देते हैं। झील के चारों ओर त्रिशूल और नंदा घुंटी जैसे हिमालयी पर्वत हैं, जो इसे एक सुरम्य स्थल बनाते हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में पर्यावरणीय बदलावों और भूस्खलनों के कारण झील का आकार सिकुड़ गया है।

इतिहास और खोज

रूपकुंड झील की खोज 1942 में एक ब्रिटिश फॉरेस्ट रेंजर ने की थी, जब उन्होंने यहाँ सैकड़ों मानव कंकाल पाए थे। इन कंकालों की उम्र लगभग 800 से 1,200 साल बताई जाती है। प्रारंभ में यह माना गया था कि ये कंकाल एक भारतीय राजा, उसकी पत्नी और उनके सेवकों के हो सकते हैं, जो किसी आपदा का शिकार हुए थे। हालांकि, 2019 में प्रकाशित एक वैज्ञानिक अध्ययन ने स्पष्ट किया कि ये लोग जेनेटिक रूप से विविध थे और इनकी मृत्यु के कारण अभी भी स्पष्ट नहीं हैं।

पौराणिक महत्व और धार्मिक संबंध

रूपकुंड झील का नंदा देवी राजजात यात्रा से गहरा संबंध है। यह यात्रा हर 12 साल में आयोजित होती है और श्रद्धालु नंदा देवी के सम्मान में यहाँ तक ट्रेक करते हैं। रूपकुंड यात्रा नंदा देवी के पवित्र स्थलों का हिस्सा मानी जाती है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, इस झील का पानी इतना साफ होता है कि इसमें व्यक्ति अपना प्रतिबिंब (रूप) देख सकता है, इसलिए इसे ‘रूपकुंड’ नाम मिला।

ट्रैकिंग मार्ग और पर्यटन

रूपकुंड झील तक पहुँचने के लिए ट्रैकिंग करनी पड़ती है, जो साहसिक यात्रियों के लिए एक चुनौतीपूर्ण अनुभव है। प्रमुख ट्रैकिंग मार्गों में लोहजंग → दीदना → बेदिनी बुग्याल → पातर नचौनी → भगुवाबासा → रूपकुंड शामिल हैं। इस ट्रैक की कुल लंबाई लगभग 50 किलोमीटर है और यह लगभग 5 दिन में पूरा किया जा सकता है। ट्रैक के दौरान यात्रियों को बर्फ से ढके पहाड़ों, घास के मैदानों और घने जंगलों से गुजरना पड़ता है।

वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ

हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय बदलावों के कारण रूपकुंड झील का आकार सिकुड़ गया है। 2024 में पहली बार झील में पानी की जगह पत्थर और मलबा दिखाई दिया, जिससे यह संकेत मिलता है कि झील का जलस्तर घट रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि बदलते मौसम और बारिश के पैटर्न इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।

संरक्षण और भविष्य की दिशा

रूपकुंड झील का संरक्षण उत्तराखंड सरकार और स्थानीय प्रशासन की प्राथमिकता है। पर्यावरणीय संरक्षण और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए झील क्षेत्र में पर्यटन को नियंत्रित किया जा रहा है। इसके अलावा, वैज्ञानिक अध्ययन और अनुसंधान के माध्यम से इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी और इतिहास को समझने की कोशिश की जा रही है।

निष्कर्ष

रूपकुंड झील न केवल एक साहसिक ट्रैकिंग स्थल है, बल्कि यह इतिहास, विज्ञान और संस्कृति का अद्भुत संगम भी प्रस्तुत करती है। इसकी रहस्यमयता और प्राकृतिक सुंदरता इसे एक अनूठा स्थल बनाती है, जो हर साहसिक यात्री और इतिहास प्रेमी के लिए आकर्षण का केंद्र है।

Read Also : उत्तराखंड गंगा दशहरा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *